उत्तराखंडउधमसिंह नगर

ऊधम सिंह नगर में पुलिस की हैवानियत: क्या कानून के रखवाले बन गए हैं उत्पीड़न के जल्लाद?

पुलिस का काम अपराधियों को पकड़कर कानून व्यवस्था बनाए रखना है। परन्तु, हाल के दिनों में उधमसिंह नगर की पुलिस का चेहरा बहुत ही भयावह रूप ले चुका है। निर्दोष नागरिकों पर बर्बरता की हदें पार करते हुए, पुलिस अब खुद ही आतंक का पर्याय बन चुकी है।

उधमसिंह नगर में पुलिस की भूमिका अब कानून और व्यवस्था बनाए रखने से कहीं अधिक हटकर हो गई है। जिन लोगों का कर्तव्य समाज की रक्षा करना था, वे अब समाज के लिए ही खतरनाक साबित हो रहे हैं। पुलिस के संरक्षण में समाज में भय का माहौल व्याप्त है। निर्दोष लोगों पर अत्याचार, उनकी पिटाई और झूठे मामलों में फंसाने की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।

एक समय था जब पुलिस को देखा जाता था तो लोगों के चेहरे पर सुरक्षा की झलक दिखती थी, लेकिन आज वही पुलिस लोगों के मन में भय और आतंक का प्रतीक बन गई है। उधमसिंह नगर में पुलिस द्वारा बिना किसी कारण निर्दोष लोगों की बेरहमी से पिटाई की घटनाएं आम हो गई हैं। पुलिस वाले न केवल लोगों की पिटाई कर रहे हैं, बल्कि उनके मोबाइल फोन तोड़ रहे हैं और उनसे पैसे भी छीन रहे हैं। यह एक गहरा सवाल उठाता है कि क्या यह वही पुलिस है जो हमारी सुरक्षा के लिए तैनात की गई है?

पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना और समाज में शांति और सुरक्षा बनाए रखना है। लेकिन जब वही पुलिस निर्दोष लोगों पर अत्याचार करने लगे, तब समाज का क्या होगा? उधमसिंह नगर में पुलिस के आतंक का यह हाल हो चुका है कि लोग अपने ही घरों में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। पुलिस द्वारा लोगों के मोबाइल फोन तोड़ना और उनके पैसे छीनना रोजमर्रा की बात हो गई है। यह अत्याचार इस हद तक बढ़ चुका है कि लोगों का पुलिस पर से विश्वास ही उठ गया है।

यह सिर्फ पिटाई और तोड़फोड़ तक सीमित नहीं है। पुलिस द्वारा लोगों को झूठे मामलों में फंसाने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। नकली ड्रग्स के मामलों में गिरफ्तारी, झूठी लड़ाई के आरोप, और अन्य फर्जी मामलों में लोगों को जेल भेजने की धमकी आम हो गई है। क्या यह वही कानून है जो संविधान और न्यायपालिका की मर्यादा का पालन करता है?

आम जनता के साथ ऐसा व्यवहार मानवीय अधिकारों का खुला उल्लंघन है। पुलिस का यह रवैया संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ट अपमान है। भारतीय संविधान में हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। ऐसे में पुलिस द्वारा की जा रही यह बर्बरता न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि मानवता के खिलाफ भी है।

आज स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि लोग पुलिस से सहायता मांगने से भी डरते हैं। पुलिस थाने में जाने का मतलब अब लोगों के लिए न्याय की उम्मीद नहीं, बल्कि अत्याचार और उत्पीड़न का भय है।

पुलिस का यह रवैया न केवल कानून के प्रति अविश्वास फैला रहा है, बल्कि समाज में एक अलग तरह का आतंक पैदा कर रहा है। क्या यही वह समाज है जिसकी हमने कल्पना की थी? एक ऐसा समाज जहाँ पुलिस खुद कानून का उल्लंघन कर रही है और निर्दोष नागरिकों को आतंकित कर रही है?

उधमसिंह नगर के लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि क्या यही वह पुलिस है जो उनकी सुरक्षा के लिए है? क्या पुलिस का काम लोगों को आतंकित करना है? यह सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार और उच्च अधिकारी इस स्थिति से अनभिज्ञ हैं या फिर वे जानबूझकर इसे अनदेखा कर रहे हैं? क्या वे नहीं जानते कि पुलिस का यह रवैया समाज में कानून और व्यवस्था के प्रति अविश्वास फैला रहा है?

पुलिस के अत्याचार का यह सिलसिला अगर नहीं रुका तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। आज हमारे सामने एक बड़ा सवाल खड़ा है कि क्या हम अपने समाज को इस तरह के अत्याचार के हवाले कर सकते हैं? क्या हम चुपचाप बैठकर इस अन्याय को सहन करेंगे या फिर इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे?

पुलिस के अत्याचार की घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इस साल में हुई कुछ घटनाओं ने पुलिस की वास्तविकता को और उजागर कर दिया है।

घटना – 1 : पुलिस हिरासत में वृद्ध की हालत बिगड़ी

रुद्रपुर। पुलिस हिरासत में वृद्ध व्यक्ति गुरविंदर सिंह की हालत बिगड़ गई, जिससे पुलिस में हड़कंप मच गया। गुरविंदर सिंह की पत्नी के अनुसार, उनके पति ने पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ उच्चाधिकारियों से शिकायत की थी। इसके बाद, 23 फरवरी 2024 की रात करीब 1.15 बजे, रुद्रपुर पुलिस के एसआई मोहन जोशी ने बिना किसी मुकदमे या वारंट के उन्हें उनके घर से उठाया और पूछताछ के लिए ले गए। पत्नी के मुताबिक, पुलिस ने रात्रि के समय उनके पति को पुलिस चौकी पर ले जाकर डराया-धमकाया और उनका उत्पीड़न किया। इसके परिणामस्वरूप, गुरविंदर की हालत गंभीर हो गई और उन्हें जिला चिकित्सालय रुद्रपुर लाया गया, जहां से उन्हें उच्च केंद्र के लिए रेफर किया गया।

घटना – 2 : कांग्रेस नेता के होटल में काटा हंगामा

रुद्रपुर। काशीपुर रोड के गावा चौक स्थित एक होटल में पुलिस कर्मी ने हंगामा किया, जिससे व्यापारियों में रोष पैदा हो गया। आरोप था कि 05 मार्च 2024 को पुलिस कर्मी ने होटल स्टाफ का मोबाइल तोड़ दिया और एंट्री रजिस्टर छीन लिया। पुलिस कर्मी ने होटल में कमरा मांगा था, लेकिन शादी की बुकिंग के कारण कोई कमरा खाली नहीं था। इससे नाराज होकर पुलिस कर्मी ने स्टाफ के साथ गाली-गलौज और धमकी दी। उसने जबरन कमरे खुलवाए, जिनमें महिलाएं और बच्चे सो रहे थे। होटल के सीसीटीवी फुटेज में रिकॉर्ड घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

घटना – 3 : हाईकोर्ट के आदेश पर सुरक्षा लेने पहुंचे नवविवाहित दम्पत्ति के साथ पुलिस ने की मारपीट

न्यूज दिनांक – 06 अप्रैल 2024

उच्च न्यायालय के आदेश पर सुरक्षा की गुहार लगाने पहुंचे नवविवाहित दंपत्ति के साथ किच्छा कोतवाली में महिला एसआई ने गाली-गलौज कर मारपीट की। रवि ने अपनी जान को खतरा बताते हुए उच्च न्यायालय से सुरक्षा की मांग की थी, जिसे माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने स्वीकार कर कोतवाल को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया था। कोतवाली पहुंचने पर महिला एसआई ने न केवल उच्च न्यायालय के आदेश की कॉपी को फाड़कर फेंक दिया, बल्कि रवि, उसकी बहन और माँ के साथ मारपीट भी की। यह घटना तब हुई जब रवि ने आदेश की कॉपी महिला एसआई को दी, जिसके बाद उसका व्यवहार और आक्रामक हो गया।

घटना – 4 : पुलिस कस्टडी में लाखों की धोखाधड़ी के आरोपी की मौत

न्यूज दिनांक – 27 जुलाई 2024

रुद्रपुर में लाखों की धोखाधड़ी के आरोपी भास्कर प्रताप पांडेय की पुलिस कस्टडी में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। भास्कर पर एक लोजिस्टिक कंपनी के चेयरमैन की शिकायत पर 52.40 लाख की फर्जी रसीदों से धोखाधड़ी का आरोप था। कोतवाली के एसएसआई दिनेश कौशिक और उनकी टीम भास्कर को उसके निवास स्थान से हिरासत में लेकर रुद्रपुर ला रही थी, जब यह घटना हुई। घटना के बाद मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी गई और शव उत्तर प्रदेश पुलिस को सौंपा गया।

घटना – 5 : पुलिस कर्मियों पर मारपीट और लूट का गंभीर आरोप

रुद्रपुर में पुलिस कर्मियों पर गंभीर आरोप लगे हैं। 28 जुलाई की रात को, थाना नानकमत्ता के निवासी पलविंदर ने एसएसपी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई कि सिसईखेड़ा तिराहे पर ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों ने बिना किसी कारण के उसकी पिटाई की। पलविंदर का कहना है कि पुलिस ने उसकी आंखों और कनपटी पर गंभीर चोटें पहुंचाईं और उसका मोबाइल तोड़ दिया। साथ ही, उन्होंने 500 रुपए छीन लिए और उसे जबरन पकड़कर नानकमत्ता थाने ले गए, जहां उसे बुरी तरह से पीटा और धमकी दी कि अगर उसने इस बारे में किसी को बताया या शिकायत की तो उसे स्मैक बेचने के आरोप में जेल भेज दिया जाएगा।

घटना – 6 : रिपोर्ट दर्ज नहीं होने पर पत्रकारों ने पुलिस के खिलाफ खोला मोर्चा

रुद्रपुर में पत्रकार नरेन्द्र राठौर और सौरभ गंगवार पर 30 जुलाई 2024 को पिस्टल तानने की घटना की रिपोर्ट दर्ज न होने पर दर्जनों पत्रकारों ने 01 अगस्त 2024 को एसएसपी कार्यालय में विरोध प्रदर्शन किया। पत्रकारों ने ज्ञापन सौंपकर आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की और मुकदमा दर्ज न होने पर बेमियादी धरना देने की चेतावनी दी। पत्रकारों का आरोप था कि घटना में शामिल लोगों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है, जिससे पुलिस कार्रवाई में देरी हो रही थी। विरोध केडी बाद एसएसपी ने मुकदमा दर्ज करने का आश्वासन दिया।

घटना – 7 : नशे में धुत सिपाही ने अधिकारियों के सामने ट्रक चालक और उसके भतीजे पर बरसाए डंडे

रुद्रपुर में 3 अगस्त को पिपलिया चौराहा पर एक पुलिसकर्मी ने नशे की हालत में अपनी दबंगई का परिचय दिया। ट्रक चालक राम और उसके भतीजे को मार्ग पूछने पर पुलिसकर्मी ने डंडे से मारा। राम और उसका भतीजा उत्तरांचल इस्पात सुल्तानपुर से स्क्रैप उतारकर रुद्रपुर की ओर आ रहे थे। चौराहा पर खड़े पुलिसकर्मी ने उन्हें ट्रक से नीचे खींच लिया और लाठी-डंडे से हमला किया। राम ने आरोप लगाया कि अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं किया। दोनों घायलों को उपचार के लिए चिकित्सालय ले जाया गया।

इन घटनाओं ने साबित कर दिया है कि उधमसिंह नगर की पुलिस का रवैया कानून और मानवता दोनों के खिलाफ है। अगर समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। यह समय है कि हम सब मिलकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं और सुनिश्चित करें कि पुलिस का काम सिर्फ और सिर्फ कानून की रक्षा करना हो, न कि उसका दुरुपयोग।

उधमसिंह नगर के निर्दोष नागरिकों को न्याय मिलना चाहिए और पुलिस के असली चेहरे को समाज के सामने लाना चाहिए। पुलिस का काम कानून की रक्षा करना है, न कि उसका दुरुपयोग। समाज को इस अन्याय के खिलाफ मिलकर खड़ा होना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

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